सीधी कांड: निर्दोष मुख्यमंत्री का प्रायश्चित

The Chief Minister presented shawl-shreefal and Shri Ganesh idol by doing Tilak and Phar at the feet of Shri Dashmat

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को यूं ही आम जन का मुख्यमंत्री नहीं कहा जाता। छोटे से गांव जैत के छोटी जोत वाले किसान शिवराज के अंतस में आज भी वही आम आदमी बसा हुआ है। जो राजनीति में आने से पहले था। उनके भाषणों को सुनो, जब वह अपने बचपन को याद करते हैं। अपने गांव को याद करते हैं। मैंने उन्हे मिंटो हॉल में एकबार गांव के संस्मरण सुनाते हुए सुना था। वह किसी बृद्ध काका को याद कर रहे थे, जिनकी दानराशि से बालक शिवराज ने गांव में रामचरितमानस का पाठ कराया था। वह काका ऐसी जाति से थे, जिसे समाज में अछूत माना जाता था। शिवराज के मन में जो मानव बैठा है, वह जैत से लेकर भोपाल तक के सफर में कभी उनसे अलग नहीं हुआ। बचपन में उन्होंने गांव के बृद्ध काका को अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा किया था तो गुरुवार को सीधी के दशमत को भोपाल में उस कुर्सी पर लाकर बिठाल दिया। जिस पर बैठना अच्छे-अच्छे व्हीआईपी के लिए भी एक सपना सरीखा होता है।

यह आमजन के मुख्यमंत्री की खासियत ही है वर्ना देश में ऐसे कौन-कौन से मुख्यमंत्री हैं जो आमजन से इतना सीधा सरोकार रखते हैं। वह केवल शिवराज हैं जो जन-जन के मन में बसे हैं और प्रदेश का जन-जन उनके मन में बसा है। आमजन के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने पीड़ित आदिवासी युवक के लिए जो किया, वह उन्हें उन महान भारतीय आत्माओं की श्रेणी में खड़ा करता है। जिन्होंने अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव के उन्मूलन की दिशा में काम किया। इस कड़ी में वह स्वामी विनोबा भावे और महात्मा गांधी के साथ खड़े दिखाई देते हैं। सोचता हूं कि जिस पद पर शिवराज हैं, वहां उनसे भेंट के लिए आम आदमी तो बहुत दूर की बात है, व्हीआईपी लोगों के लिए भी समय मिलना दुरूह हो सकता है। लेकिन कहां मिलेगा ऐसा मुख्यमंत्री, जिससे मिलना इतना आसान है कि जो अपने निवास में बुलाकर नर का सत्कार नारायण समझकर करता है।

आज मुख्यमंत्री निवास से जो वीडियो सामने आई, उसे बारीकी से देखें तो जैसे ही शि वराज दषमत के पैरों की ओर झुकते हैं तो भोलाभाला दषमत उनके हाथ पकड़ने लगता है। शि वराज उसे प्यार भरी मनाही करते हैं और थाली में अपने हाथों से उसके पैर धोते हैं। कुछ मित्र कहते हैं कि यह राजनीतिक स्टंट है। मैं कहता हूं कि यदि यह राजनीति है, तो मुझे यह राजनीति का स्वर्णयुग प्रतीत होता है। जब एक मुख्यमंत्री पीड़ित के साथ हुए अन्याय के विरुद्ध न केवल कठोर कार्रवाई कराता है बल्कि स्वंय भी अपराधी महसूस करते हुए अपराध बोध से ग्रस्त होकर अनूठा प्रायश्चित करता है।

कुछ घटनाएं भविष्य में हमेशा के लिए उदाहरण बन जाती हैं। मुख्यमंत्री निवास में एक आदिवासी युवक को कुर्सी पर बैठाकर स्वंय नीचे बैठकर पांव पखारने वाले शिवराज ने अनजाने में एक बार फिर एक ऐसी लकीर खींच दी है, जिसे छोटा किया नहीं जा सकता और बड़ी लकीर खींचने के लिए पहले शिवराज होना पड़ेगा। पं. दीनदयाल उपाध्याय आज स्वर्ग से देख रहे होंगे कि अंत्योदय का जो सपना उन्होंने देखा था, उसे साकार करन के लिए कोई दिल से प्रयास कर रहा है। शिवराज के इस प्रायश्चित से मैं दशमत की मनोस्थिति में सुधार भी देख रहा हूं। जो व्यक्ति अपने साथ हो रहे घृणित कृत्य का प्रतिकार तक नहीं कर पा रहा था, वह मुख्यमंत्री को अपने पैरों में बैठा देखकर चिंतित हो उठता है। काश ! ऐसा ही सुधार हमारे समाज में आ जाए तो कभी निर्दोष मुख्यमंत्री को न किए हुए पापों का प्रायश्चित न करना पड़ेगा।

BY – आदित्य त्रिवेदी