गुरु पूर्णिमा विशेष- सद्गुरु वही जो साहिब से मिलाए
सत्य के साधक, परमात्मा को प्राप्त करने और जीवन के संघर्षों से पार पाने के लिये सदैव सच्चे गुरू की खोज में रहते हैं, लेकिन कई बार इस प्रयास में वे झूठे गुरूओं के चंगुल में फंस जाते हैं।
एक सच्चे गुरू की सबसे बड़ी पहचान ये है कि वह आपको परमात्मा से मिलाता है अर्थात वह आपकी कुंडलिनी को जागृत करके आपका सबंध परमात्मा की सर्वव्याप्त शक्ति से स्थापित करवाता है। एक बार जब गुरू नानकदेव जी से पूछा गया कि सच्चा गुरू कौन है तो उन्होंने कहा साहब मिलिहें सो ही सद्गुरू अर्थात जो आपको परमेश्वर से मिलाये वही सच्चा सद्गुरू है अन्यथा सब बेकार हैं। उन्होंने इन गुरूओं को अगुरू और कुगुरू की श्रेणियों में भी बाँटा है। उन्होंने बताया कि सद्गुरू ही सच्चे गुरू होते हैं, जो आपको परमपिता परमेश्वर या दैवीय शक्ति से मिलाते हैं।
एक सद्गुरू के गुण
1. आप अपने गुरू को खरीद नहीं सकते।
एक सच्चे गुरू को एक माता की भाँति अपने शिष्यों के कल्याण और धार्मिक शिक्षा का पूरा दायित्व लेना चाहिये। गुरू ही अपने शिष्य को ब्रहमचैतन्य से जोड़ता है। आप उसको खरीद नहीं सकते। यदि आप किसी गुरू को खरीदते हैं तो वह आपका दास हो सकता है, लेकिन गुरू कभी नहीं हो सकता।
2. एक गुरू को उच्च कोटि की साक्षात्कारी
आत्मा और अत्यधिक विकसित या उत्क्रांतित होना चाहिये।
मानवीय चेतना और परमेश्वरी चेतना के बीच बहुत बड़ा अंतराल या गैप होता है, जिसको पूर्ण गुरू के अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं भर सकता है। आज पूर्णिमा का दिन है और पूर्णिमा का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा। गुरू को संपूर्ण व्यक्तित्व होना चाहिये, जो अपने शिष्यों को परमेश्वरी ज्ञान और विधानों के विषय में बता सके और उनकी समझ को उस स्तर तक ऊँचा उठा सके, जिससे वे उन विधानों को समझ सकें।
3. गुरु को तपस्वी होने की आवश्यकता नहीं है।
यदि आप पूर्व के सभी गुरूओं के जीवन को देखें तो आप पायेंगे कि वे सभी विवाहित थे, उनके बच्चे थे और वे सामान्य लोगों की तरह से जीवन जीते थे। गुरू को न तो तपस्वी होने की और न ही जंगलों में जाकर रहने की आवश्यकता है। वह एक सामान्य गृहस्थ जीवन व्यतीत कर सकता है और वह एक राजा भी हो सकता है। उनके लिये जीवन की इन बाह्य और व्यर्थ धारणाओं का कोई अर्थ नहीं है।
नीचे सत्य के साधकों के लिये महत्वपूर्ण बिंदु दिये जा रहे हैं, जिनसे से वे निर्णय ले सकते हैं कि कौन सच्चा गुरू है और कौन झूठा।
1. गुरू के साथ आपके अनुभव कैसे रहे? आपको बताये गये कोई भी क्षणिक अनुभव दैवीय नहीं हो सकते। आपको प्रभावित करने के उद्देश्य से आपको दिखाये जाने वाले विज़न या दृश्य, ध्वनियाँ, भविष्यवाणियाँ, प्रभामंडल, हवा में तैरना, मृतकों के साथ बातचीत और इसी प्रकार की अन्य गतिविधियाँ या करतब अत्यंत भ्रामक होते हैं और ये निसंदेह बहुत खतरनाक हो सकते हैं।
2. यदि वह गुरू आध्यात्मिक मार्ग पर चलने हेतु आपको अपने परिवार और संपत्ति को त्यागने का निर्देश देता है, तो निश्चित रूप से आपके लिये यह खतरनाक हो सकता है। अतः ऐसे गुरू से सावधान हो जाइये।
3. यदि आपके गुरू आपको किसी खास तरह की वेशभूषा अपनाने या किसी विशेष आसन या मुद्रा आदि में बैठने, मंत्रजाप या किसी विशेष तरह की अँगूठी या कोई आभूषणादि पहनने को कहते हैं? आपको जान लेना चाहिये कि परमात्मा इन सब व्यर्थ की चीज़ों से परे हैं और उनके लिये, आपकी उनको प्राप्त करने की शुद्ध इच्छा शक्ति ही अधिक महत्व रखती है।
4. यदि वह एक धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ बताते हैं तो इसका अर्थ है कि वे धर्म के नाम पर केवल पाखंड फैला रहे हैं।
5. यदि आपके गुरू आपको व्यभिचार, यौन स्वतंत्रता या ब्रह्मचर्य की ओर उन्मुख कर रहे हैं, तो फिर निश्चित रूप से आप गलत स्थान पर आ गये हैं।
साधना के मार्ग पर चलने के लिये आपको अनेकों शुभकामनायें।
*सहज योग परिवार की ओर से गुरु पूर्णिमा की ढेरों शुभकामनाएं*
नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।